उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादवका जन्म इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था। किसान परिवार में जन्मे मुलायम के पांच भाई-बहन हैं। पिता सुधर सिंह यादव उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे लेकिन पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह को मैनपुरी में एक कुश्ती-प्रतियोगिता में प्रभावित करने के बाद उन्होंने नत्थू सिंह के ही विधानसभा क्षेत्र जसवन्त नगर से राजनीतिक सफर शुरू किया था।
राजनीति में आने से पहले मुलायम कुछ दिनों तक इन्टर कॉलेज में टीचिंग भी कर चुके हैं। मुलायम ने यूपी के आगरा विवि से एमए और जैन इंटर कॉलेज से बीटीसी किया था। सियासत के अखाड़े में आने से पहले वह पहलवान थे।
मुलायम सिंह यादव का सियासी सफरनामा

गरीब किसान परिवार में जन्मे मुलायम सिंह जिला स्तर के पहलवान थे लेकिन 15 साल की उम्र में ही उन पर लोहिया की विचारधारा का असर देखने को मिला था। उन्होंने 28 साल की उम्र में साल 1967 में अपने राजनीतिक गुरू राम मनोहर लोहिया की पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विधायकी का चुनाव पहली बार लड़ा था और जीतने में कामयाब रहे।
अगले ही साल यानी 1968 में जब राम मनोहर लोहिया का निधन हो गया, तब मुलायम सिंह अपने दूसरे राजनीतिक गुरू चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए। साल 1974 में भारतीय क्रांति दल और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हो गया और नई पार्टी भारतीय लोक दल का गठन हुआ।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध में जब कई विपक्षी पार्टियां एकजुट हुईं और 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ तब मुलायम सिंह इसमें भी शामिल रहे। मुलायम इसी पार्टी के जरिए 1977 में फिर विधायक चुने गए और उत्तर प्रदेश की रामनरेश यादव सरकार में मंत्री बनाए गए।उनके पास पशुपालन विभाग के अलावा सहकारिता विभाग भी थी।

उन्होंने इस विभाग के जरिए राज्य में अपनी राजनीतिक पैठ जमाई। उन्होंने उस वक्त मंत्री रहते हुए सहकारी (कॉपरेटिव) संस्थानों में अनुसूचित जाति के लिए सीटें आरक्षित करवाई थीं। इससे मुलायम सिंह यादव पिछड़ी जातियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए थे। जल्द ही उन्हें धरतीपुत्र कहा जाने लगा।
1979 में चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद मुलायम सिंह उनके साथ हो लिए। चरण सिंह ने नई पार्टी लोक दल (Lok Dal) का गठन किया। मुलायम सिंह यूपी विधान सभा में नेता विरोधी दल बनाए गए।
मुलायम लगातार अपनी सियासी जमीन मजबूत कर रहे थे। 1987 में चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद उनकी पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह एक हिस्से (लोक दल-अ) के मुखिया हुए जबकि मुलायम सिंह गुट लोक दल-ब कहलाया।

1989 में राजनीतिक हवा का भांपते हुए मुलायम सिंह ने लोक दल (ब) का विलय जनता दल में कर दिया। उस वक्त वीपी सिंह राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा देकर देशभर में बोफोर्स घोटाले के बारे में लोगों को बता रहे थे।
वीपी सिंह ने जनमोर्चा बनाया था। 1989 के दिसंबर में ही लोकसभा चुनाव के साथ-साथ यूपी विधान सभा चुनाव भी हुए। केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी और यूपी में मुलायम सिंह यादव पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। उन्हें बीजेपी ने भी सपोर्ट किया था।
भाई के लिए दे दिया था गुरु को दांव

समाजबादी पार्टी के पितामह कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने कभी अपने राजनीतिक गुरु और पूर्व पीएम चंद्रशेखर सिंह को दांव दे दिया था। ऐसा उन्होंने अपने भाई रामगोपाल यादव के लिए किया था। यह किस्सा साल 1990 के बाद का है।
साल 1990 में उन्होंने चंद्रशेखर के साथ मिलकर समाजवादी जनता पार्टी बनाई। चंद्रशेखर इसके अध्यक्ष थे। मुलायम इसमें उनके साथ थे। केंद्र में तब कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर पीएम बने, जबकि यूपी में कांग्रेस के सपोर्ट से मुलायम सीएम बने रहे।
लेकिन साल 1991 में दोबारा चुनाव हुए, लेकिन इस बार सियासी पास पलट चुके थे और राज्य की जनता ने बहुमत देकर बीजेपी को चुना और बीजेपी यूपी की सत्ता में आ गई। कल्याण सिंह तब उत्तर प्रदेश के सीएम बने।

इसी बीच, चंद्रशेखर और मुलायम में टकराव बढ़ा। दरअसल, यूपी विस में 24 विधायक थे। पर राज्यसभा चुनाव में एक उम्मीदवाद भेजा जाना था। चंद्रशेखर अपनी पसंद के कैंडिडेट को वहां चाहते थे। मगर मुलायम ने तभी मास्टर भाई रामगोपाल यादव का पर्चा भरा दिया।
अब इसको मुलायम सिंह की दूर दर्शिता ही कहा जा सकता है, कि अपने राजनैतिक गुरु के विरूद्ध जाकर अपने भाई को मैदान में उतार दिया, न केवल उतारा बल्कि जीता भी दिया। बस यंही से तस्वीर साफ़ हो गई कि दोनों के बीच का मेल ज्यादा दिन नहीं चलने बाला। और हुआ भी कुछ ऐसा ही।
साल 1992 में मुलायम सिंह ने पासा फेंका और समाजबादी जनता पार्टी से अलग होते हुए समाजबादी पार्टी का ऐलान कर दिया। हालांकि, तब ज्यादातर दलों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया था। पर आगे…

राजनीतिक दांव-पेंच के माहिर मुलायम सिंह बहुजन समाज पार्टी के साथ दोस्ती कर 1993 में फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। मायावती और मुलायम का गठबंधन दो साल बाद ही 1995 में तल्ख और भारी कड़वाहट भरे रिश्तों के साथ टूट गया।
इसके बाद बीजेपी के सहयोग से मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनीं। 2003 में यादव ने एक बार फिर सियासी अखाड़े का धोबी पछाड़ दांव चला और मायावती को अपदस्थ कर दिया। एक साल पहले ही 2002 के चुनावों में मायावती ने बीजेपी के सहयोग से कुर्सी पाई थी लेकिन बीजेपी ने उनसे अपना समर्थन वापस ले लिया।
नेता से पहले थे पहलवान

मुलायम सिंह यादव सियासी अखाड़े के दाव-पेच तो बखूबी जानते ही है लेकिन साथ ही जमीनी अखाड़े में भी बह दो-दो हाँथ कर चुके है। सियासत के अखाड़े में आने से पहले वह पहलवान थे। फिर अध्यापन में आए और 60 के दशक में राजनीति में एंट्री ली। मुलायम ने यूपी के आगरा विवि से एमए और जैन इंटर कॉलेज से बीटीसी किया था।
भैंसा गाड़ी से गई थी बारात

मीडिया खबरों के अनुसार, मुलायम सिंह यादव का राजनितिक सफर जितना दिलचस्प रहा उतना ही उनका निजी जीवन भी मीडिया की सुर्खियों से अछूता नहीं रह सका। मीडिया खबरों के अनुसार, पहली शादी 18 साल की उम्र में कर दी गई थी। वह तब 10वीं में थे। बताया जाता है कि तब मुलायम की बारात भैंसा गाड़ी से गई थी, क्योंकि तब मोटर कारों का इतना चलन नहीं था।