बुधवार को पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने अपने बयान में रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी की ज़मानत याचिका पर स्वतंत्रता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय की नाराज़गी से सहमती जताई है, साथ ही उन्होंने सवाल किया कि जब बात कश्मीरियों की होती है तो यह बात सेलेक्टिव क्यों हो जाती है?
पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा, “स्वतंत्रता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय की नाराज़गी से सहमत हूं, लेकिन दुख की बात है कि यह नाराज़गी सेलेक्टिव क्यों हो जाती है क्योंकि, बेबुनियाद इल्जामों पर कई कश्मीरियों और पत्रकारों को जेलों में बंद कर दिया जाता है. इन मामलों में अदालत का फैसला भूल जाइए, उनकी तो सुनवाई तक नहीं होती है. उनकी स्वतंत्रता के लिए तत्कालिकता क्यों नहीं है?”
Agree with SCs outrage on right to liberty. But sadly this outrage has been selective as there are hundreds of Kashmiris & journalists languishing in jails on baseless charges. Forget court ruling they didn’t even get a hearing. Why no sense of urgency for their liberty?
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) November 11, 2020
बता दें, बीते दिनों बुधवार को न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की अवकाशकालीन पीठ ने 2018 के आत्महत्या मामले को लेकर रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी को ज़मानत देते हुए कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो इस बात का उन्हें मालूम चलना चलना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय है.

न्यायमूर्तियों के एक पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ‘हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमे उच्च न्यायालय लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा ना करते हुए उन्हें ज़मानत नहीं दे रहे हैं. इतना ही नहीं, न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से सवाल किया कि अर्नब गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की क्या जरूरत थी और कहा कि यह ”व्यक्तिगत आजादी” से जुड़ा मामला था. पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को इन सभी बातों को नजरअंदाज करना चाहिए.

पीठ ने कहा कि सवाल तो यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण किसी कि आज़ादी उससे छीन लेंगे? अगर सरकार इस आधार पर लोगों को निशाना बनाएगी तो कोई भी सुरक्षित महसूस नहीं कर पाएगा. आप टेलीविज़न चैनल देखना नापसंद कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.
पीठ ने अंतिम सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से भी सवाल किया ‘क्या पैसे का भुगतान नहीं करना, आत्महत्या के लिए उकसाना है? ए ‘बी को कभी पैसे का भुगतान नाही करता है ओर क्या यह आत्महत्या का मामला है? अगर उच्च न्यायालय कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह न्याय का उपहास होगा.’