गांधी नेहरू परिवार का इतिहास उतना ही गहरा है जितना भारतीय राजनीति का नाम। भारतीय आजादी के साथ शुरू हुई आधुनिक भारत की नीव नेहरू-गांधी परिवार की ही देन है। गांधी-नेहरू परिवार को लेकर अक्सर यह बातें सोशल मीडिया पर वायरल होती है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के वंशज मुस्लिम थे और उनकी बेटी ने मुस्लिम से शादी की। यह दोनों दावे किस हद तक सच है इसका एक नजरिया आज हम आपके सामने इतिहास पर आधिरित किताबों के आधार पर समझाने की कोशिश करेंगे।
नेहरू परिवार को लेकर अक्सर यह बात सोशल मीडिया पर वायरल होती है कि जवाहरलाल नेहरू के वंशज मुस्लिम थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू के दादा का नाम गयासुद्दी खान बताया जाता है। सोशल मीडिया पर यह खबर अक्सर राजनीतिक नजरिये से धर्म जाति-विवाद का कारण भी बनती है।

नेहरू परिवार का इतिहास 18 वीं सदी से शुरू हुआ था। जवाहरलाल नेहरू के पूर्वज राजनारायण कौल को मुगल बादशाहा फर्रूखसियर ने दिल्ली आने का न्योता दिया था, जिसके बाद राज नारायण कौल सपरिवार दिल्ली आ गए थे। दरअसल 1713 में दिल्ली में मुगल बादशाह फर्रूखसियर की सल्तनत हुआ करती थी। यह वह दौर था जब मुगल बादशाह अपनी सियासत में कुछ पढ़े-लिखे लोगों को तवज्जो दिया करते थे। राजनारायण कौल पढ़े लिखे थे तो ऐसे में मुगल बादशाह ने उन्हें दिल्ली आने का न्योता दिया।
मुगल बादशाह फर्रूखसियर दिल्ली के तख्त पर 1713 से 1719 तक विराज रहे। उस दौरान राजनारायण कौल जिन के इतिहास के बारे में कश्मीर पर लिखित किताब कश्मीर का इतिहास में भी जिक्र किया गया है। वह मुगल बादशाह फर्रूखसियर के न्यौते पर दिल्ली आ गए थे। बता दे कौल कश्मीरी ब्राह्मणों का उपनाम होता है। अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब जवाहरलाल नेहरू के पूर्वज कौल थे तो वह नेहरू कैसे बने…?

नेहरू परिवार के कौल से नेहरू बनने का इतिहास बेहद दिलचस्प है। यह बात तो अक्सर गांवों और नगरों में देखी जाती है कि कई बार किसी बड़े परिवार का नाम उसके घर के आसपास बनी चीजों से जुड़ जाता है। यही कारण है कि जब राजनारायण कौल का परिवार दिल्ली आया तो मुगल बादशाह ने उन्हें चांदनी चौक में एक हवेली रहने के लिए दी। इस हवेली के पास एक नहर हुआ करती थी।
उस दौरान चांदनी चौक में काफी बड़े तबके के कश्मीरी रहा करते थे। इलाके में कश्मीरी थे इसलिए राजनारायण कौल के परिवार को धीरे-धीरे कौल नेहरू नाम से जाना जाने लगा। ऐसे में नहर शब्द का कनेक्शन राजनारायण कॉल के परिवार के साथ जुड़ गया। इलाके में उन्हें कॉल नेहरू के नाम से जाना जाने लगा।

वहीं दूसरी ओर मुगल बादशाह फर्रूखसियर के बुलाने पर राजनारायण कौल दिल्ली तो आ गए, लेकिन जिसने उन्हें बुलाया वह मुगल बादशाह खुद एक साजिश का शिकार हो गए और उनका कत्ल हो गया। ऐसे में राजनारायण कौल के लिए एक अच्छी बात यह रही कि बादशाह और उनकी सल्तनत तो चली गई, लेकिन राजनारायण कौल की हवेली उनके पास ही रही।
कौल परिवार के नेहरू बनने के इस इतिहास की कहानी कई किताबों में बयां की गई है। बी आर नंदा सहित कई नेहरू जीवनीकारों ने उनके दिल्ली और हवेली के पास ही नहर का जिक्र अपने किताब में किया है। इसके अलावा खुद जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में नेहरू सरनेम के पीछे का यही कारण बताया है।

जहां एक ओर कौल से नेहरू बने गांधी परिवार की यह कहानी बी आर नंदा सहित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी किताबों में बयां की है तो वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के इतिहासकार शेख अब्दुल्ला की जीवनी पर आधारित किताब आतिश-ए-चिनार के संपादक और जम्मू कश्मीर संस्कृति एवं भाषा अकादमी के पूर्व सचिव मोहम्मद यूसुफ टैंक ने पूरी कहानी को गलत बताया है। उनका कहना है कि इस कहानी की नींव ही गलत है, क्योंकि मुगल बादशाहा फर्रूखसियर कभी कश्मीर गए ही नहीं।
मोहम्मद यूसुफ टैंग ने कहा कि जब मुगल बादशाहा फर्रूखसियर कश्मीर गए ही नहीं, तो नेहरू परिवार का यह दावा कि राज नरायण कौल बादशाह के बुलाने पर दिल्ली आये…यह पूरी तरह से गलत है। यह नेहरू सरनेम का विवाद आज भी गलत सही के बीच अक्सर खबरों का केंद्र बनता है। वहीं इसे लेकर इतिहासकारों ने अपना अपना नजरिया जरूर जाहिर किया है।

इतना ही नहीं उन्होंने अपनी लिखित किताब में नेहरू सरनेम को लेकर एक अलग ही कहानी बयां की है। उन्होंने कहा है कि नेहरू सरनेम कश्मीर की ही पैदाइश है, जहां उत्तर भारत में ई शब्द से उपनाम बनते हैं तो वहीं कश्मीर में उ शब्द का इस्तेमाल अक्सर उपनाम के लिए किया जाता है। कश्मीर में क्योंकि नहर के लिए कुल या नद दो शब्द का इस्तेमाल किया जाता है तो नेहरु सरनेम का कश्मीर से ही रिश्ता मालूम पड़ता है।
टैंक ने अपनी इस किताब में नेहरू परिवार के सरनेम का जिक्र करते हुए कहा कि शायद नेहरू परिवार श्रीनगर एयरपोर्ट के पास के नुहर के पास के गांव का रहने वाला है। यही कारण हो सकता है कि उनका उपनाम नेहरू पड़ा हो।

वहीं भारतीय राजनीति के नजरिए से देखें तो नेहरु शब्द का पहली बार इस्तेमाल मोतीलाल नेहरू के नाम से ही सामने आया था। मोतीलाल नेहरु ने अपने उपनाम से कौल हटाकर नेहरू रखने की शुरुआत की थी। इसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यानि जवाहरलाल नेहरू ने उनके इस उपनाम को अपनाया और यह परिवार तब से नेहरू उपनाम से जाना जाने लगा।
हालांकि नेहरू उपनाम भी जवाहरलाल नेहरू के नाम के साथ ही खत्म हो गया। नेहरू की इकलौती संतान इंदु उर्फ इंदिरा थी, तो जब उन्होंने फिरोज खान से शादी की तो धर्म को लेकर इंदिरा और फिरोज की शादी में काफी जाति विवाद को खड़ा हुआ। ऐसे में इस विवाद को खत्म करने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपना उपनाम फिरोज को दे दिया, जिसके बाद फिरोज खान…फिरोज गांधी के नाम से जाने जाने लगे। इसके बाद इंदिरा नेहरू…इंदिरा गांधी के नाम से जानी जाने लगी और तब से यह परिवार गांधी परिवार के नाम से ही जाना जाता है।