उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कुंदरकी कस्बे के एक छोटे से किसान परिवार में जन्मी इलमा अफरोज की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है। इलमा अफरोज ने बचपन से लेकर अब तक अपनी जिंदगी में काफी जंग लड़ी है। बात रोटी की हो. पढ़ाई की हो या विदेश जाकर पढ़ाई करने की।

इलमा हर पड़ाव पर एक लड़ाई लड़ी है। अपनी लंबी जंग की लड़ाई के बाद साल 2018 में बतौर ने आईपीएस इल्मा ने अपना पदभार संभाला। आईये आपको सुनाते हैं इलमा अफरोज की यह संघर्ष की पूरी कहानी…

उत्तर प्रदेश में जन्मी इल्मा मात्र 14 साल की थी जब उनके पिता का निधन हो गया था। इस दौरान उनका भाई 12 साल का था। ऐसे में उनकी मां ने दोनों बच्चों की देखभाल का बीड़ा उठाया। इस बात का जिक्र खुद इल्मा ने अपने दास्तां सुनाते हुए किया है। उन्होंने बताया कि मेरी मां ने मुझे और मेरे भाई को बहुत संघर्षों से पाला है। वह बहुत मजबूत महिला है, जहां एक लड़की के दहेज के लिए और शादी के लिए लोग पैसे बचाते हैं उस दौरान मेरी मां ने मुझे पढ़ाने का बीड़ा उठाया था।

इल्मा ने बताया कि मेरी मां ने अपने मुश्किल समय में खेती, दूसरों के घर बर्तन धोने से लेकर हर काम किया है। उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर मुझे और मेरे भाई को पढ़ाया है। वह अकेली ही अपने पैसों से परिवार का पालन पोषण करती थी। इल्मा बताती है कि उन दिनों उनके पास रहने के लिए घर तक नहीं था।

इल्मा ने अपने शुरुआती पढ़ाई गांव से फिर स्कॉलरशिप हासिल कर दिल्ली के जाने-माने सेंट स्टीफन कॉलेज से की है। इसके बाद उन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर विदेश में पढ़ाई की और अच्छी नौकरी भी हासिल किए, लेकिन इल्मा यहीं नहीं रुकी और उन्होंने विदेश की नौकरी को छोड़ कर अपने देश के लिए कुछ करने का फैसला किया। यहीं से शुरू हुआ इलमा का आईपीएस बनने का सफर…

देश के लिए कुछ करने का सपना लेकर इल्मा अपने गांव वापस आ गई। इसके बाद साल 2017 में यूपीएससी की सिविल सेवा में इल्मा ने 217वीं रैंक हासिल की। इसके बाद वह ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद गई, जहां उनकी ट्रेनिंग हुई। इसके बाद उन्हें साल 2018 में हिमाचल प्रदेश कैंडर में बतौर आईपीएस अधिकारी नियुक्त किया गया।

इलमा हमेशा यही कहती हैं कि बेटियों को सिर्फ सुरक्षा लेने ही नहीं चाहिए बल्कि उन्हें दूसरों की सुरक्षा करनी भी चाहिए। अपने इसी सोच को सार्थक करने के लिए इल्मा ने काफी कठिन परिश्रम कर आईपीएस की परीक्षा पास की।